- जन्म नामRajendra Kumar Jain
- माताSmt. Rattibai Jain
- पिताMUNI SHRI VISHYAJEET SAGAR JI
- जन्म ग्रामBhind {M.P.}
- जन्म दिनांक18-Dec-1971
- जन्म दिनांक (भारतीय तीथी)18-Dec-1971
- शालेय शिक्षाMetric
परम पूज्य आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी महाराज के बचपन से प्रारंभिक क्रियायें उनके भविष्य में वैराग्य की और बढ़ते क़दमों का संकेत दे रही थी।उनका विवरण निम्न प्रकार से है।
बचपन से ही जिनालय जाना:- महाराज श्री अल्पायु से अपने पिता जी श्री रामनारायण जी एवं माता जी श्रीमती रत्ती देवी एवं अपने अग्रजों के साथ प्रतिदिन श्री जिन मंदिर जी दर्शनों के लिये जाने लगे थे।
रात्रि भोजन एवं अभक्ष्य वस्तुओं का त्याग:-लला राजेंद्र (आचार्य श्री का बचपन का नाम)ने ७ वर्ष की अल्पायु में श्री जिनालय में रात्रि भोजन का त्याग एवं अभक्ष्य वस्तुओं के त्याग का नियम ले लिया था और उसका पालन भली प्रकार से किया ।
सप्त व्यसनों का त्याग एवं अष्ट मूल गुणों का पालन:- लला राजेंद्र जब ८ वर्ष के थे तभी से उन्होंने सप्त व्यसन का त्याग एवं अष्ट मूल गुणों का पालन करना प्रारंभ कर दिया था।
बिना देव दर्शन भोजन न करने का नियम:- लला राजेंद्र ने १३ वर्ष की अल्पायु में तीर्थराज श्री दिग. जैन सिद्ध क्षेत्र शिखर जी में बिना देव दर्शन के भोजन न करने का नियम ले लिया था ।
स्वत: ब्रहमचर्य व्रत अंगीकार :- अल्पायु में लला राजेंद्र ने अपने ग्राम रुर के जिनालय में भगवान् के समीप स्वयं ही ब्रहमचर्य व्रत ले लिया था ।
अनेक तीर्थ क्षेत्रों की वंदना करने का सौभाग्य :- राजेंद्र लला ने अपने पिता जी माता जी एवं अनेक परिवार जनों के साथ बचपन से ही शिखर जी,सोनागिरी जी,एवं अनेक तीर्थ क्षेत्रों के दर्शन करने एवं वह विराजमान पूज्य महाराजों के दर्शन करना भी उनके वैराग्य का एक बिंदु है।
परमपूज्य गुरुवर १०८ मुनि श्री विराग सागर जी महाराज के प्रथम दर्शन अपनी बहन के यहाँ नगर भिंड में सन १९८८ में प्रथम बार किये ।उनके प्रवचन और दर्शन से राजेंद्र लला के मन में वैराग्य कके बीज अंकुरित होने लगे।
जैन धर्म की पुस्तकों का अध्ययन ,मनन ,चिंतन :- राजेंद्र भैया बचपन से ही ग्रथों का अध्ययन करके उन पर मनन एवं चिंतन करने लगे थे ,जो उनके वैराग्य की और बढ़ने का एक माध्यम बना।
भिंड में आदरणीय संयमी महानुभावों से भेंट :- जैन मंदिर भिंड में आदरणीय पं. मेरु चन्द्र जी(परमपूज्य मुनिश्री विश्व कीर्ति सागर जी महाराज) वर्तमान में समाधिस्थ एवं बाल ब्र. श्री रतन स्वरूप श्री जैन (वर्तमान में आचार्य श्री विनम्र सागर जी महाराज) से मुलाकात भी भैया राजेंद्र के पथ पर बढ़ने में सहायक हुई।
परम पूज्य गुरुवर श्री का वर्ष १९८८ का भिंड में वर्षा योग :- पूज्य मुनि श्री १०८ विराग सागर जी महाराज का १९८८ में पवन वर्षा योग भिंड नगर में हुआ ।भैया राजेंद्र उस अवधि में अपनी बहन के यहाँ भिंड में रहकर पूज्य गुरुवर के संघ में आते रहते थे।इस से लम्बे समय तक गुरुवर का सानिध्य मिला उनके प्रवचन का भी प्रभाव पड़ा ।जिस से उनका मन विराग सागरजी में चरणों में रम गया और वे संघ में ही रहने लगे और वह से विहार करने पर संघ के साथ विहार भी किया।
ब्रह्मचर्य व्रत अंगीकार करना:- श्री राजेंद्र भैया पूज्य गुरुवर मुनि श्री १०८ विराग सागर जी के साथ विहार करते हुए अतिशय क्षेत्र बारासों पधारे ।यद्यपि राजेंद्र ने रुर नगर में जिनालय के सामने दीपावली के दिन ब्रह्मचर्य व्रत के लिया था फिर भी यहाँ गुरुवर के समीप दिनांक १६ नवम्वर को १७ वर्षकी उम्र में ब्रहमचर्य व्रत पुन: अंगीकार किया।
ब्रह्मचर्य अवस्था में नग्न होकर अभिषेक करना:- १९८८ में एकांत मे ब्रह्मचर्य अवस्था में नग्न होकर भगवान् का अभिषेक किया था जो उनके भविष्य का संकेत दे रहा था।
क्षुल्लक दीक्षा:- राजेंद्र भैया ने आचार्य विराग सागरजी के कर कमलो से दिनांक ११ अक्टूबर १९८९ को भव्य क्षुल्लक दीक्षा ग्रहण की।उनका नाम रखा गया क्षुल्लक श्री यशोधर सागर जी इस समय इनकी आयु १८ वर्ष की थी।
ऐलक दीक्षा:- परम पूज्य क्षुल्लक श्री यशोधर सागर जी ने आचार्य विराग सागरजी के कर कमलो से २ वर्ष बाद दिनांक १९ जून १९९१ को भव्य ऐलक दीक्षा पन्ना नगर मे ग्रहण की।
मुनि दीक्षा:- ऐलक दीक्षा के ६ माह बाद ही परम पूज्य ऐलक श्री यशोधर सागर जी ने २० वर्ष की आयुमे अपने गुरुवर से श्रेयांस गिरी में दिनांक २१-११-१९९१ को भव्य मुनि दीक्षा ग्रहण की,नाम रखा गया मुनि श्री १०८ विशुद्ध सागर जी महाराज ।
आचार्य पदारोहण:-परम पूज्य मुनि श्री १०८ विशुद्ध सागर जी महाराज को परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विराग सागर जी के कर कमलो से ३१ मार्च २००७ को मुनि दीक्षा के १५ वर्ष ६ माह बाद ३५ वर्ष की आयु में दिनांक ३१ मार्च २००७ को आचार्य पद पर प्रतिष्ठित किया गया।
संक्षिप्त परिचय | |
जन्म: | १८ दिसम्बर १९७१ |
जन्म नाम : | राजेन्द्र कुमार जैन |
जन्म स्थान : | भिडं (म.प्र.) |
माता जी नाम : | श्रीमती रत्तीबाई जैन |
पिताजी नाम : | राम नारायण जी जैन (मुनि श्री विश्वजीत सागर जी) |
शिक्षा : | मैट्रिक |
क्षुल्लक दीक्षा : | ११ अक्टुबर १९८९ |
क्षुल्लक दीक्षा स्थान : | भिन्ड |
क्षुल्लक दीक्षा गुरु : | आचार्य श्री १०८ विराग सागर जी महाराज |
ऐलक दीक्षा : | १९ जून १९९१ |
ऐलक दीक्षा स्थान : | पन्ना |
ऐलक दीक्षा गुरु : | आचार्य श्री १०८ विराग सागर जी महाराज |
मुनि दीक्षा : | २१ नवंबर १९९१ |
मुनि दीक्षा स्थान : | श्रेयासं गिरि |
मुनि दीक्षा गुरु : | आचार्य श्री १०८ विराग सागर जी महाराज |
आचार्य पद : | ३१ मार्च २००७ महावीर जयन्ती |
आचार्य पद स्थान : | ओरंगाबाद महाराष्ट्र |
आचार्य पद प्रदाता : | आचार्य श्री १०८ विराग सागर जी महाराज |